गवरइया और गवरे की बहस के तर्कों को एकत्र करें और उन्हें संवाद के रूप में लिखें।
गवरइया और गवरे की बहस आदमी के कपड़े पहनने पर शुरू हुई थी। इसके बाद गवइया ने टोपी पहनने की इच्छा जाहिर की। जब गवरइया को रुई का फाहा मिल गया तो फिर गवरा ने उससे बहस की। गवरा का कहना था कि उसके लिए टोपी कोई नहीं बनाएगा। क्योंकि सब राजा का काम कर रहे हैं। गवरइया और गवरे की बहस को इस प्रकार लिखा जा सकता है।
गवरइया- देखते हो, आदमी रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर कितना सुंदर दिखाई देता है।
गवरा - पागल है क्या? आदमी कपड़े पहनकर बदसूरत दिखता है।
गवरइया- लगता है आज लटजीरा चुग आए हो? आदमी पर कपड़ा कितना फ़बता है?
गवरा - खाक फ़बता है। कपड़े से मनुष्य की खूबसूरती ढक जाती है। अब तुम्हारे शरीर का एक-एक कटाव मैं
जो देख रहा हूँ, कपड़े पहनने में कैसे देख पाता।
गवरइया- आदमी मौसम की मार से भी बचने के लिए कपड़े पहनता है।
गवरा - कपड़े पहनने से आदमी की सहनशक्ति भी प्रभावित होती है। साथ ही कपड़े पहनने से आदमी की हैसियत में भी तो फ़र्क दिखने लगता है।
गवरइया- आदमी की टोपी तो सबसे अच्छी होती है। मेरा भी मन टोपी पहनने को करता है।
गवरा - तू टोपी की बात कर रही है! टोपी की तो बहुत मुसीबते हैं। जरा-सी चूक हुई और टोपी उछलते देर नहीं लगती। मेरी मान तो तू इस चक्कर में पड़ ही मत।
गवरइया- मिल गया, मिल गया, मुझे रुई का फ़ाहा मिल गया।
गवरा - लगता है तू पगला गई है। तुझे पता है, रुई से टोपी बनवाने का सफ़र कितना कठिन है?
गवरइया- टोपी तो बनवानी है चाहे जैसे भी बने।